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भूलें : सन्ताप, चिन्ता या दुःख मत करो
अगर अपात्रता का भाव तुम्हें उमड़ती हुई कृतज्ञता से भर देता है और आनन्दातिरेक के साथ श्रीअरविन्द के चरणों पर डाल देता है तो जान लो कि यह सच्चे मूल स्रोत से आता है । इसके विपरीत यदि वह तुम्हें दीन-दु:खी बनाकर तुममें छिप जाने या भाग जाने का आवेग लाता है तो तुम निश्चित रूप से जान सकते हो कि इसका स्रोत विरोधी है । पहले की ओर तुम मुक्त रूप से खुल सकते हो, दूसरे को अस्वीकार करना चाहिये । ४ फरवरी, १९३३
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तुम्हें अपने-आपको अपनी की गयी भूलों के लिए पीड़ा न देनी चाहिये, परन्तु तुम्हें अपनी अभीप्सा में पूर्ण सचाई रखनी चाहिये और अन्त में सब कुछ ठीक हो जायेगा । ४ जनवरी, १९३४
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अपनी अशुद्धियों के बारे में बहुत ज्यादा सोचना सहायता नहीं करता । तुम जो पवित्रता, प्रकाश ओर शान्ति प्राप्त करना चाहते हो उन पर अपने विचार को स्थिर रखना ज्यादा अच्छा है । ७ फरवरी, १९३४
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हमेशा हमारी कमजोरियां ही हमें उदास करती हैं, हम मार्ग पर एक कदम आगे बढ़कर आसानी से पुन: स्वस्थ हो सकते हैं । १२ मई, १९३४
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मैं अपने अन्दर 'आपकी' उपस्थिति के बारे में सचेतन होने के लिए
२५९ जितना अधिक प्रयास करता हूं उतनी ही अधिक कोई चीज मेरे रास्ते में आती है |
तुम्हें इन छोटी-मोटी चीजों के बारे में चिन्ता नहीं करनी चाहिये--इनका अपने-आपमें कोई महत्त्व नहीं है । उनका मूल्य हमें यह दिखाने में है कि हमारी प्रकृति में अभी तक अचेतना कहां मौजूद है ताकि हम वहां प्रकाश ला सकें । १३ जुलाई, १९३४
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अपूर्णताएं और त्रुटियां देखना ठीक है लेकिन केवल इस शर्त पर कि वह नयी प्रगति के लिए अधिक साहस लाये, और लाये तुम्हारे संकल्प में अधिक बल तथा विजय और भावी पूर्णता में दृढ़तर विश्वास । २२ जनवरी, १९३५
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अयोग्यता के ये विचार वाहियात हैं ये प्रगति के सत्य का निषेध हैं--अगर अभीप्सा बनी रहे तो जो आज नहीं किया जा सकता वह फिर किसी दिन किया जायेगा । ६ फरवरी, १९३५
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चीजें भले वैसी न हों जैसी होनी चाहियें लेकिन चिन्ता उन्हें सुधारने में सहायता नहीं करती । निश्चल विश्वास बल का स्रोत है । ११ नवम्बर, १९३६
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जब कभी तुमने कोई भूल की है तो मैंने तुमसे छिपाये बिना स्पष्ट रूप से कह दिया है । हर एक भूलें करता है और हर एक को सीखना और प्रगति करनी है । और फिर तुम्हें तो मैंने एक बड़ा उत्तरदायित्व दिया
२६० है । तुमने जो किया है उसकी मैं पूरी तरह सराहना करती हूं लेकिन अभी बहुत कुछ सीखने के लिए बाकी है और मुझे विश्वास है कि ज्ञान और अनुभव पाने में तुम्हें बड़ी खुशी होगी ।
मेरे प्रेम और आशीर्वाद सहित । १३ अक्तूबर, १९४३
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भूतकाल के बारे में सोचते रहना बिलकुल गलत है । सच्ची वृत्ति यह है कि यह याद रखो कि भगवान् की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता और चुपचाप उसके आगे झुक जाओ । अगर भूतकाल में तुमने भूलें की हैं तो वे सच्चे समर्पण के अभाव के कारण थीं ओर भूलों को सुधारने का एकमात्र तरीका है सच्चाई के साथ समर्पण करना ।
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लेकिन यह उसके बारे में विचलित हो जाने का कोई कारण नहीं है । बस एकदम ठंडे रह कर मानव प्रकृति की लगायी हुई सीमाओं के भीतर अपना अच्छे-से-अच्छा करो ।
आखिर पूरी-की-पूरी जिम्मेदारी 'प्रभु' की है और किसी की नहीं । इसलिए चिन्ता करने की कोई बात नहीं है ।
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अपनी भूलों को पहचानना अच्छा है लेकिन तुम्हें सन्ताप नहीं करना चाहिये ।
तुम्हें दुःखी नहीं होना चाहिये बल्कि अपने-आपको ठीक करना चाहिये ।
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मां, मैं थक गया है क्योंकि हर रोज कोई नया संकट मेरे ऊपर आ गिरता हे ।
मेरे प्यारे बालक,
तुम्हें इन छोटे-छोटे अनिष्टों के लिए अपने-आपको सन्ताप नहीं पहुंचाना
२६१ चाहिये । बहुत शान्त बने रहो और ये दुर्घटनाएं आगे से न होंगी ।
मेरे आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ हैं ।
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आज डबलरोटियां (बन) फूलीं नहीं, पता नहीं क्यों । हमें डर था कि डबलरोटियां अच्छी नहीं बनीं इसलिए अन्त में हमने ''साब्ले'' , एक तरह का बिस्कुट, बनाया और वह भी जल गया ।
मां, हमें बतायेंगी कि चीजे हमारे विरुद्ध क्यों जाती हैं ?
तुम्हें इन छोटी-मोटी चीजों के बारे में चिन्ता नहीं करनी चाहिये, और सब से बढ़कर यह कि दुर्भाग्य पर विश्वास मत करो । इन छोटी-मोटी असफलताओं के पीछे हमेशा कोई कारण होता है, कुछ अधिक अनुभव के द्वारा उनसे बचा जा सकता है, और वह निश्चय ही आयेगा ।
मैंने डबलरोटी चखी-स्वाद बहुत अच्छा है । वे इसलिए नहीं फूलीं क्योंकि उन्हें पर्याप्त सेका नहीं गया । चूल्हा बहुत ज्यादा गरम होगा, इससे रोटी जल गयी और अन्दर पकने से पहले बाहर का रंग भूरा होने लगा ।
''साब्ले'' के बारे में : वे जले नहीं, वे बहुत अच्छे बने हैं ।
मेरे आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ हैं ।
भूलें : पहचानो और उन्हें सुधारो
जब कोई भूल हो तो उसका हमेशा प्रगति करने के लिए उपयोग करना चाहिये, एक बार आवश्यक परिवर्तन हो जाये तो भूल और उसका कारण गायब हो जाते हैं और वह अपने-आपको कभी दोहरा नहीं सकती । ६ अप्रैल, १९३७
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यह बहुत अच्छा हे कि तुम अपनी प्रकृति की भूलों और त्रुटियों से अवगत हो गयी हो । एक बार जान लेने पर उनमें से बाहर निकल आना
२६२ और स्वभाव को बदलना हमेशा सम्भव होता है । २३ जनवरी, १९३८
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इसके विपरीत, मुझे ऐसा लगता है कि सबसे अच्छा तरीका यह है कि तुम वहीं रहो जहां हो और स्वयं अपनी गलतियों को खोजने का प्रयास करो-अन्य सभी की तरह तुम्हारे अन्दर भी कुछ होंगी--और उन्हें ठीक करने की कोशिश करो । अपनी भूलों के बारे में सचेतन होना किसी कठिनाई से बाहर निकल आने का सबसे निश्चित तरीका है ।
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पहचान ली गयी भूल क्षमा की गयी भूल होती हे । १४ अक्तूबर, १९३१
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अस्वीकार की गयी भूल ऐसी भूल है जिसे तुम सुधारने से इन्कर करते हो ।
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पश्चात्ताप : भूलें ठीक करने की ओर पहला कदम ।
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अपनी सफाई देने से कोई फायदा नहीं । तुम्हारे अन्दर यह संकल्प होना चाहिये कि एक बार जो भूल तुम कर चुके हो उसमें वापिस न गिरोगे ।
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हर रात, सोने से पहले हमें यह प्रार्थना करनी चाहिये कि जो भूलें हमने दिन में की हों वे भविष्य में दोहरायी न जायें । २० जून, १९५४
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२६३ साल के इस अन्तिम दिन, आओ हम यह संकल्प करें कि विदा होते हुए वर्ष के साथ हमारी सारी कमजोरियां और हमारे सभी दुराग्रही अन्धकार भी झड़ जायें । ३० दिसम्बर, १९५४
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वही भूलें न दोहराने का दृढ़ और प्रभावी संकल्प और भागवत कृपा पर पूर्ण विश्वास ही एकमात्र उपचार है ।
२८ फरवरी, १९५५
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